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April 27, 2024 10:56 am
April 27, 2024

The Hindi Mail

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किस चुनाव में 25 प्रतिशत निर्वाचित विधायक निर्दलीय उम्मीदवार थे?

1937 में पहली बार हिंदुस्तान में प्रांतीय विधानसभा और विधान परिषद के चुनाव हुए। उस समय हिंदुस्तान में कुल 11 राज्य (प्रांत) थे जिसमें से विधानसभा का चुनाव 11 में और विधान परिषद का चुनाव 6 राज्यों में हुआ। आज भी हिंदुस्तान के 37 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से मात्र 6 राज्यों में ही विधान-परिषद का प्रावधान है। वर्ष 1937 के चुनाव में 11 राज्यों के 1585 विधानसभा और 257 विधान-परिषद सीटों पर मतदान हुआ। परिणाम चौकाने वाले थे। इस विषय पर लंदन यूनिवर्सिटी के David Denis Taylor ने वर्ष 1971 में अपनी PhD भी लिखी थी।

 

विधानसभा चुनाव:

वर्ष 1937 के चुनाव में कुल 1585 विधानसभा क्षेत्रों में से 385 सीट अर्थात् 24.29 प्रतिशत सीटों पर विजय ऐसे उम्मीदवारों को मिला था जो किसी भी राजनीतिक दल से सम्बंध नहीं रखते थे, अर्थात् वो निर्दलीय विधायक थे। दूसरी तरफ़ इस चुनाव में सार्वधिक सफलता कांग्रेस को मिली थी जिन्हें 707 विधानसभा सीटों पर सफलता मिली थी। लेकिन कांग्रेस को पूरे देश में आधे से भी कम मात्र 44.60 प्रतिशत विधानसभा क्षेत्रों में सफलता मिली थी।

 

दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी मुस्लिम लीग को मात्र 116 विधानसभा सीटों पर सफलता मिली थी जो देश कि कुल विधानसभा सीटों का मात्र 7.32 प्रतिशत था और निर्दलीय विधायकों द्वारा 24.29 विधानसभा सीटों पर सफलता का एक तिहाई भी नहीं था। इसके अलावा अन्य छोटे-छोटे राजनीतिक दलों से विजयी होकर विधानसभा पहुँचे विधायकों की संख्या 397 थी जो कि कुल विधायकों की संख्या का 25.05 प्रतिशत था।

कांग्रेस को 11 राज्यों में से बिहार, मध्य प्रांत (मध्य प्रदेश), मद्रास, ओड़िसा, और उत्तर प्रदेश को छोड़कर किसी भी राज्य में पूर्ण बहुमत नहीं मिला था जबकि दो राज्यों (पंजाब और सिंध) में ग़ैर-कांग्रेसी सरकार बनी थी। अन्य पाँच राज्यों में कांग्रेस ने अन्य पार्टियों और निर्दलीय विधायकों से गठबंधन करके सरकार बनाई थी। निर्दलीय उम्मीदवारों को सर्वाधिक सफलता बंगाल में मिली थी जहां 250 में से 113 सीटों पर क़ब्ज़ा निर्दलीय उम्मीदवारों को मिली थी। इसी तरह नोर्थ वेस्ट फ़्रंटियर प्रांत और पंजाब में भी निर्दलीय उम्मीदवारों को कांग्रेस से अधिक सीटों पर जीत मिली थी।

 

1937 चुनाव

विधान परिषद चुनाव:

निर्दलीय उम्मीदवारों का जीत का अनुपात देश में हुए विधान-परिषद के चुनाव में और भी अव्वल था। देश के कुल 257 विधान परिषद सीटों पर हुए चुनाव में 111 निर्दलीय उम्मीदवार विजयी हुए जबकि कांग्रेस के मात्र 64 और मुस्लिम लीग के मात्र 12 उम्मीदवारों को सफलता मिली। अर्थात् निर्दलीय उम्मीदवारों को 43.19 प्रतिशत सीटों पर सफलता मिली जबकि कांग्रेस को मात्र 24.90 और मुस्लिम लीग को मात्र 4.67 प्रतिशत सीटों पर सफलता मिली।

 

जिन राज्यों के विधान परिषद चुनाव में कांग्रेस की करारी हार हुई थी उसमें बंगाल में कुल 63 में से कांग्रेस को मात्र 9 सीट, बिहार में 29 में से मात्र 8 सीट, बॉम्बे में 30 में से मात्र 13 सीट और उत्तर प्रदेश में 60 में से मात्र 8 सीटों पर कांग्रेस को सफलता मिली थी। एक मात्र राज्य जहां विधान परिषद चुनाव में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिला था वो था मद्रास।

 

आसाम के विधान परिषद चुनाव में कांग्रेस और मुस्लिम लीग को एक भी सीट पर सफलता नहीं मिली थी। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि आज़ादी के बाद जिस एक प्रांत में विधान परिषद को ख़त्म कर दिया गया और आज तक बहाल नहीं किया गया वह प्रांत आसाम ही था। इसके अलावा बंगाल, पंजाब और तमिलनाडु में भी विधान परिषद को भंग किया गया जहां कांग्रेस राजनीतिक रूप से कमजोर रहती थी।

 

पार्टी-विहीन लोकतंत्र:

यही वह दौर था जब देश में पार्टी-विहीन लोकतंत्र का सपना देखने वाले और कांग्रेस के ख़िलाफ़ सम्पूर्ण क्रांति का नारा देने वाले जननायक जयप्रकाश नारायण अपनी राजनीतिक जड़े मज़बूत कर रहे थे और देश को कांग्रेस का विकल्प देने का प्रयास कर रहे थे। हालाँकि जयप्रकाश नारायण का यह सपना बहुत जल्दी निराशा में बदलने वाली थी जब वर्ष 1946 के प्रांतीय चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवारों की सफलता वर्ष 1937 की तुलना में बहुत ख़राब होने वाली थी। दूसरी तरफ़ महात्मा गांधी की भी बहुत जल्दी हत्या होने वाली थी जिनके पंचायती लोकतंत्र की परिकल्पना में किसी भी राजनीतिक पार्टी को कहीं कोई स्थान नहीं था।

 

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